जूडो (Judo) एक प्रचलित खेल है जिसे मुख्य रूप से जापान का माना जाता है. ये दांव-पेंच की ऐसी कला है जिसमें दक्ष होकर एक शक्तिहीन व्यक्ति भी शक्तिशाली हो जाता है. भारत में भी जूडो काफी प्रचलित है और इसके लिए कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है.
जूडो का इतिहास (Judo history)
जूडो शब्द ‘जुजुत्सु’ से उत्पन्न हुआ है. माना जाता है की इस तरह की कला को शुरू में बौद्ध भिक्षु अपनाया करते थे. वे इस कला के माध्यम से बिना खून-खराबा किए अच्छे-अच्छों को धूल चटा देते थे. इसके बाद वे जैसे-जैसे विश्वभर में घूमते रहे इस कला का प्रचार होता रहा. इसे जापान ने अच्छी तरह अपनाया और एक खेल बनाकर ‘जूडो’ के रूप में पेश किया. उन्होने अपने सैनिकों को भी इस कला में माहिर किया. इन्टरनेशनल लेवल पर जूडो की संस्था की स्थापना साल 1951 में हुई और साल 1956 में पहली जूडो विश्व चैम्पियनशिप हुई. जापानी इस कला में पहले से ही दक्ष थे तो उन्होने विश्वभर के सभी खिलाड़ियों को पराजित कर दिया था. इसके बाद साल 1964 में ओलंपिक में जूडो को मान्यता मिली.
भारत में जूडो (Judo in India)
जूडो भारत में भी काफी प्रचलित है और जूडो को कई अकादमी भारत में मौजूद है. भारत में जूडो काला का उदय जापानी यात्रियों के माध्यम से हुआ था. भारत में जूडो संघ की स्थापना साल 1964 में हुई थी. साल 1966 में पहली जूडो चैम्पियनशिप का आयोजना किया गया था. 1986 के एशियाद खेलों में भाग लेकर 4 कांस्य पदक प्राप्त किए थे. ओलंपिक खेलो में भारत ने 1992 के ओलंपिक में जूडो के मुकाबलों में प्रथम बार भाग लिया.
जूडो रिंग आकार (Judo Ring size)
जूडो एक रिंग में खेला जाता है जिसे ‘सियाइओ’ कहते हैं. ये एक वर्गाकार प्लेटफॉर्म होता है जो भूमि से कुछ ऊंचाई पर होता है. जूडो रिंग की लंबाई और चौड़ाई कम से कम 8 मीटर की होती है और ज्यादा से ज्यादा 10 मीटर की होती है. प्लेटफॉर्म के बाहर 7 सेमी चौड़ा असुरक्षित क्षेत्र होता है. ये लाल रंग की पट्टी द्वारा दर्शाया जाता है.
जूडो कैसे खेलते हैं? (How to play judo?)
जूडो शुरू होने के पहले दोनों खिलाड़ी रिंग में आते हैं और जज व रैफरी को अभिवादन करते हैं. इसके बाद एक-दूसरे से कुछ दूरी पर खड़े होकर झुककर अभिवादन करते हैं. रैफरी द्वारा इशारा करने पर दोनों खिलाड़ी एक दूसरे पर विभिन्न दांव-पेंच का प्रयोग करते हैं और आगे-पीछे धकेलना शुरू करते हैं. इस खेल में जब एक खिलाड़ी खुद को दूसरे खिलाड़ी से मुक्त नहीं करा पाता तो वह हार मान लेता है. जूडो का समय 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक का होता है. ये खेल की गंभीरता पर तय करता है.
जूडो के महत्वपूर्ण संकेत (Judo words in Japanese)
जूडो खेल में जापानी शब्दों का प्रयोग किया जाता है.
मट्टा : इसका मतलब होता है ‘मैं हार गया’
हाजीमे : इसका मतलब होता है ‘खेल शुरू करें’
योशी : इसका मतलब होता है ‘खेलना जारी रखो’
जिकाल : इसका मतलब होता है ‘खेल समाप्त’
यूई : इसका मतलब है ‘केवल एक चेतावनी’ खेल के नियम तोड़ने पर
हिकी वाके : इसका मतलब होता है ‘खेल ड्रॉ’
सोगो-गोची : खेल के विजेता को ‘सोगो-गोची’ कहकर संभोधित किया जाता है
सोनमाना : खिलाड़ियों को रिंग से बाहर चले जाने की स्थिति में रैफरी ये कहकर उन्हें बाहर जाने का संकेत देता है.
जूडो में फ़ाउल (Foul in Judo)
– विपक्षी खिलाड़ी के पेट, सिर अथवा गर्दन को नहीं दबाना चाहिए और गर्दन को टांगों में दबाकर नहीं मोड़ना चाहिए.
– जमीन पर पीठ के बल लेते हुए खिलाड़ी से दोबारा संघर्ष करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
– जिस टांग पर विपक्षी खिलाड़ी खड़ा है उस पर कैंची नहीं मारनी चाहिए.
– बिना किसी उचित कारण किसी खिलाड़ी को चीखना या चिल्लाना नहीं चाहिए.
– बिना किसी कारण किसी खिलाड़ी को धकेलना नहीं चाहिए.
– रैफरी की आज्ञा के बिना अपनी बेल्ट नहीं खोलनी चाहिए.
– विपक्षी खिलाड़ी के साथ कोई भी ऐसा दांव-पेंच न चले जिससे उसकी रीड की हड्डी को नुकसान हो.
– पीछे चिपके हुए खिलाड़ी को पीछे की ओर जानबूझकर नहीं गिरना चाहिए.
– खिलाड़ी के कपड़े में हाथ डालकर उसे पकड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
– दूसरे खिलाड़ी की बेल्ट नहीं पकड़ना चाहिए.
– दूसरे खिलाड़ी के मुंह की ओर हाथ और पाँव सीधे रूप से नहीं चलाना चाहिए.
जूडो गेम बेल्ट (Judo belt)
जूडो खेल में बेल्ट के अनुसार खिलाड़ी की ग्रेड निर्धारित होती है यानि कोई खिलाड़ी कितना मास्टर है ये आप उसके बेल्ट के रंग को देखकर बता सकते हैं.
जूडो की शुरुवात होती है व्हाइट बेल्ट से. ये जब आप खेलना शुरू करते हैं तब आपके मिल जाता है. इसके बाद ब्लू बेल्ट, यलो बेल्ट, ग्रीन बेल्ट, ब्राउन बेल्ट और ब्लैक बेल्ट मिलता है. इसकी शुरुवात को क्यू ग्रेड कहते हैं. ये सभी बेल्ट क्यू ग्रेड के हैं. इसमें ब्लैक बेल्ट सबसे ऊंचा लेवल का है जिसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है.
ब्लैक बेल्ट के बाद कौन सा बेल्ट मिलता है?
क्यू ग्रेड पूरा होने के बाद आपकी एक साल की ट्रेनिंग होती है और आपको सेकंड डन के लिए तैयार किया जाता है. ब्लैक बेल्ट के बाद मिलने वाले बेल्ट सेकेंड डन में ही दिये जाते हैं. सेकंड डन पूरा होने पर आपको ब्लैक बेल्ट में दो दूसरे रंग की पट्टियाँ लगी मिलती है.
सेकेंड डन के बाद तीसरे डन में जाने के लिए आपको दो साल की ट्रेनिंग करनी होती है. इस ट्रेनिंग को करने के लिए आपकी उम्र 16 से 18 साल के बीच होनी चाहिए. थर्ड डन के बेल्ट में ब्लैक बेल्ट होता है जिसमें तीन स्ट्रिप लगे होते हैं. फोर्थ डन में जाने के लिए आपको 3 साल की ट्रेनिंग करनी होती है. इसमें आपके बेल्ट में 4 स्ट्रिप लगी होती हैं. इसके बाद आप पांचवे डन के लिए 4 ट्रेनिंग करनी होती है. इसी तरह 10 डन तक की ट्रेनिंग होती है और इसमें आपके ब्लेक बेल्ट में 10 स्ट्रिप लगे होते हैं.
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